वफ़ा…बस थोड़ी सी

सुबह होने में अभी कुछ देर है। रात का आखिरी पहर है। पहाड़ी रास्ते पर एक जीप टेढ़े मेढ़े रास्तों से गुज़र रही है। दो प्राणी उसमें बड़े ही शांत बैठे हैं। आवाज़ या तो सड़क के किनारे झाड़ियों की सरसराहट की है या फिर जीप के इंजन और पहियों की। कभी गाड़ी जब गड्ढे से गुज़रते हुए हिचकोले खाती है, तो दोनों एक दूसरे की ओर देख लेते हैं। श्यामा और शक्ति को घर से निकले पंद्रह मिनट हो गये हैं, उन्हें अभी लगभग एक घंटे तक इन्ही पहाड़ी रास्तों से गुज़रते हुए सोनपुर पहुँचना है। वह श्यामा की ससुराल है। शक्ति श्यामा का सबसे छोटा भाई है। उसके सुख-दुःख का साझीदार, जीवन में सबसे अच्छा दोस्त। दोनों की उम्र में दो ढाई साल का अंतर, लेकिन दोनों खेलते-कूदते, लड़ते-झगड़ते, स्नेह की डोरी में बंधकर एक दूसरे का ख़याल रखते हुए बड़े हुए हैं। हर मुश्किल समय में श्यामा ने माँ के बाद अगर किसी को याद किया है तो वह शक्ति ही है। बड़ा ही समझदार, समस्याओं को कई पहलुओं से देखकर हल करने का प्रयास करने वाला भाई। श्यामा कभी-कभी भाई के बारे में सोचती है तो, उसके आगे सब रिश्ते धुंधले नज़र आने लगते हैं। आज भी तो बस कुछ ही मिनट में वो राज़ी हो गया। वरना कल घर में उठे तूफान के बाद ससुराल का नाम लेना भी शायद सभी को नागवार गुज़रता। श्यामा याद करने लगी कि उसने किस तरह से अपने भाई को जगाने की हिम्मत की।

कुछ ही देर पहले वह अशांति के सागर में उठीं विचारों की लहरों पर हिचकोले खा रही थी। रात के उस आखिरी पहर में उसे छोड़ कर घर के सारे लोग गहरी नींद में थे। श्यामा की आंख लगने का नाम नहीं ले रही थी। कुछ था जो उसे लगातार बेचैन किये जा रहा था। कल दिन में जो कुछ हो गुज़र गया था, उस तूफान का एक-एक पल उसके दिमाग़ पर हथौड़े बरसा रहा था। ससुराल से कुछ रिश्तेदार उसे बुलाने आये थे। दोनों पक्ष एक निश्चित समाधान पर पहुँचना चाहते थे। ससुराल के लोग श्यामा को ले जाना चाहते थे और मायके का पक्ष उसे भेजने को तैयार नहीं था। समस्या थी, उसका पति निर्मल। जिसके व्यवहार के कारण वह ससुराल छोड़कर बीते चार महीनों से मायके में रह रही थी। कल जब कुछ रिश्तेदार उसे लेने आये तो उसके भाइयों और उन रिश्तेदारों में बात बनने के बजाय उलझती ही चली गयी।

श्यामा खुद यह फैसला नहीं कर पायी कि वह क्या करें। दो साल पहले निर्मल से विवाह हुआ था। विवाह के बाद से ही उसका व्यवहार कुछ अजीब सा था। बाद में पता चला कि वह जिस लड़की से प्रेम करता था, उसका विवाह किसी और से होने से वह काफी दुःखी था। वह उस लड़की को भूल नहीं पा रहा था। इस दुःख में वह श्यामा को पूरी तरह नहीं अपना पाया।

श्यामा ने विवाह से पूर्व जो सपने संजोये थे, वो सब चकनाचूर हो गये। निर्मल सीधे मुँह बात तक नहीं करता था। उसने अपनी नौकरी भी छोड़ दी थी। घर के दूसरे लोग भी उससे लापरवाह हो गये थे। डेढ़ साल तक श्यामा ने अपना जीवन इसी माहौल में गुज़ारा। न वे कहीं घूमने गये और न कभी प्यार भरी बातें कीं। सुबह से शाम हो जाती। निर्मल पता नहीं दिन भर कहाँ-कहाँ घूमता रहता और फिर रातों में भी केवल अपनी सिसकियाँ ही उसके साथ होतीं। उत्सव के दौरान जब वह मायके आयी तो सारी बातें माँ को बतायी और माँ ने भाइयों को। बड़े भाई ने घोषणा कर दी कि श्यामा ससुराल नहीं जाएगी। चार महीने इसी तरह बीत गये और फिर कल का हंगामा उसे पल-पल याद है कि किस तरह दोनों पक्ष आपस में लड़ते रहे। उसने दोनों के बीच में कुछ नहीं कहा।

तूफान के गुज़र जाने के बाद शाम को जब वह घर से बाहर निकली तो उसे गली के नुक्कड़ पर एक बहुत ही जाना पहचाना चेहरा नज़र आया। वह श्यामा की स्कूल की टीचर थीं।

श्यामा ने प्रश्न के स्वर में पूछा.. “छाया टीचर?”

“हाँ, कैसी हो श्यामा?”

“ठीक हूँ…” कहते कहते उसकी आँखों से अचानक आँसू निकल आये।

टीचर ने देखा तो वह जान गयी कि श्यामा काफी दुःखी है। वह उसे अपने घर ले गयी। बातों बातों में टीचर ने उसकी दुःख भरी कहानी को विस्तार से सुना। फिर उन्होंने अचानक श्यामा को कुछ ऐसा प्रश्न पूछा कि वह चौंक गयी। टीचर का सवाल ही कुछ ऐसा था।

“क्या तुम अपने पति में कोई एक भी अच्छाई देखती हो? यदि तुम को उसमें कोई अच्छाई दिखाई दे तो वहाँ से अपनी जिंदगी फिर से शुरू करने के बारे में सोच सकती हो। उसका निर्णय तुम्हें खुद लेना है, इसमें न ससुराल के लोग तुम्हारी मदद करेंगे और न मायके वाले।”

श्यामा अवाक सी होकर टीचर का मुंह देखती रह गयी, क्योंकि उसने कभी इस पहलू से सोचा ही नहीं था। टीचर से मिलकर घर लौटते हुए वह उसी एक बात पर विचार कर रही थी। उसने ससुराल में बिताए डेढ़ साल के अतीत पर नज़र डाली ….…तलाश थी कोई एक अच्छाई की!

श्यामा को याद आया कि निर्मल ने कभी शराब नहीं पी। हालाँकि उसके बहुत से मित्र शराब की पार्टियाँ करते थे। निर्मल ने कभी गुस्से में श्यामा पर हाथ नहीं उठाया। फिर याद आयी वह घटना…..।

मायके आने से कुछ एक महीना पहले की ही बात होगी। पति पत्नी दोनों मोटरसाइकिल पर निर्मल की बुआ के घर जा रहे थे। रास्ते में अचानक मोटर साइकिल सामने से आ रही कार से टकराई और दोनों नीचे गिर गये। श्याम के सिर पर चोट आयी थी और निर्मल के हाथ पैर छिल गये थे। निर्मल को अपने घायल होने का कोई भान नहीं था, वह केवल श्यामा को देखे जा रहा था। उसने गाड़ी वहीं सड़क के किनारे लगा दी और श्यामा को एंबुलेंस में लेकर अस्पताल पहुंचा। श्यामा का सिर निर्मल की गोद में था और आँख में आँसू। अस्पताल में भी उसे अपनी चोटों की कोई चिंता नहीं थी, बस वह चाहता था कि श्यामा ठीक हो जाए। दो घंटे के बाद डॉक्टरों ने उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी और वे घर चले आये। श्यामा को टीचर के प्रश्न का उत्तर तलाशना था।

रात भर श्यामा उन्हीं बातों में उलझी रही। निर्मल के व्यक्तित्व की कुछ अच्छाइयाँ तलाश कर रही थी। वह सोचने लगी कि दुर्घटना से अस्पताल जाते समय निर्मल की आँखों में क्या था? हमदर्दी, सहानुभूति, प्रेम या फिर पत्नी को सुखी न रख पाने का दुख। श्यामा तय नहीं कर पा रही थी कि क्या करें और रात के उस आखरी पहर उसने तय कर लिया कि वह ससुराल जाएगी और निर्मल की आँखों में छुपी उस छोटी सी वफा से अपनी नयी ज़िंदगी की शुरुआत करेगी। उसने छोटे भाई को नींद से जगाया और अपना निर्णय सुना दिया। उन्हें पता था कि बड़े भाई उसकी बात तत्काल नहीं मानेंगे। इसलिए दोनों भाई बहन चुपके से घर से निकल पड़े।

रात का अंधेरा छंटने लगा था। सूरज धीरे-धीरे अंधेरी गुफाओं से आसमान के रास्ते पर आगे बढ़ रहा था। जीप सोनपुर की सीमाओं में दाखिल हो चुकी थी। निर्मल अपने घर के बड़े से सहन में लगी सीमेंट की बेंच पर बैठा था। उसकी आँखें सूजी हुई थीं। लगता था वह भी रात भर नहीं सो पाया था। श्यामा को जीप से उतरते हुए देखकर वह आश्चर्यचकित रह गया। वह कुछ बोलता इससे पहले ही श्यामा उसके गले लगकर रो पड़ी। निर्मल के आँसू भी नहीं रुक सके और फिर घर के लोग भी इस सुखद दृश्य को खामोश, लेकिन स्नेहल दृष्टि से देखते रहे। ऐसा लग रहा था, जैसे छोटी सी वफा ने बेवफाइयों के सागर को पार कर दुख के पहाड़ के किनारे से सुख का कोई रास्ता तलाश कर लिया हो।